भारतीय संविधान मे मौलिक अधिकार | fundamental rights of the Indian citizen – all the best gk

hello friends welcome to all the best GK. दोस्तों आज की इस पोस्ट में हम बात करेंगे. भारतीय संविधान मे मौलिक अधिकार fundamental rights of the Indian citizen. तो दोस्तों शुरू करते हैं आज की हमारी पोस्ट भारत देश के संविधान में मौलिक अधिकार. fundamental rights of India.

भारतीय संविधान मे मौलिक अधिकार । fundamental rights of the Indian citizen

मौलिक अधिकारों ( Fundamental rights ) को संयुक्त राज्य अमेरिका के संविधान से लिया गया है.
☆ इसका वर्णन संविधान के भाग 3 में ( अनुच्छेद 12 से अनुच्छेद 35 ) है. संविधान के भाग 3 को भारत का अधिकार पत्र ( magnacarta ) कहा जाता है. इसे मूल अधिकारों का जन्मदाता भी कहा जाता है.

मौलिक अधिकारों ( fundamental rights ) में संशोधन हो सकता है एवं राष्ट्रीय आपात के दौरान (अनुच्छेद 352 ) जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार को छोड़कर अन्य मौलिक अधिकारों को स्थगित किया जा सकता है.
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Fundamental rightof the Indian citizen 

What is fundamental rights

☆ प्रत्येक व्यक्ति के सर्वांगीण विकास ( मानसिक, भौतिक, शारीरिक, आध्यात्मिक और नैतिक विकास ) के लिए कुछ अधिकार दिए जाने आवश्यक होते हैं. इनके अभाव में व्यक्ति का समग्र विकास रूक जाता है. ये अधिकार ही मौलिक अधिकार कहलाते हैं. अर्थात व्यक्ति के व्यक्तित्व के विकास के लिए राज्य द्वारा स्थापित की गई ऐसी स्थितियां जिन्हे समाज मान्यता प्रदान करता है, उसे मूल अधिकार कहते हैं.
☆ आधारभूत स्वतंत्रता और सुविधाओं को भी “मौलिक अधिकार” कहा जाता है.
        प्रो● लास्की – “अधिकार ( rights ) सामाजिक जीवन कि वे परिस्थितियां हैं जिनके बिना व्यक्ति प्रायः अपना विकास नहीं कर सकता|”
भारतीय संविधान ( Indian constitution ) के अनुसार मौलिक अधिकार वे अधिकार हैं जिन्हें मानना हमारी संघीय सरकार और राज्य सरकारों के लिए अनिवार्य हैं. यदि सरकारें इन अधिकारों का हनन करती हैं तो इनके विरुद्ध न्यायालय में अपील की जा सकती है इन अधिकारों में राज्य द्वारा भी हस्तक्षेप नहीं किया जा सकता.
☆ भारतीय संविधान के भाग 3 में अधिकारों का वर्गीकरण भी दो श्रेणियों में किया जा सकता है –
( 1 ) सकारात्मक अधिकार = अनुच्छेद 19 (1) अनुच्छेद 21(a) अनुच्छेद 25 (1) अनुच्छेद 29 अनुच्छेद 30 और अनुच्छेद 32 की भाषा सकारात्मक है इनके जरिए व्यक्तियों / नागरिकों के लिए अधिकारों का सृजन किया गया है और उन्हें संरक्षण प्रदान किया गया है.
( 2 ) नकारात्मक अधिकार = अनुच्छेद 14 अनुच्छेद 15 (2) अनुच्छेद 16 (2) अनुच्छेद 18 (1) अनुच्छेद 20 अनुच्छेद 21 अनुच्छेद 22 (1) अनुच्छेद 27 और अनुच्छेद 28 (1) की भाषा नकारात्मक है. इनके जरिए राज्यों को आदेश दिया गया है कि वह विशिष्ट प्रकार का कार्य न करें जो अपनी प्रकृति में भेदभावकारी अथवा नकारात्मक है.

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मौलिक अधिकारों की शुरुआत [ the beginning of fundamental rights ]

दोस्तों विश्व में मूल अधिकारों की शुरुआत 1215 ई0 में ब्रिटेन सम्राट जॉन द्वितीय द्वारा सर्वप्रथम मैग्नाकार्टा नामक अधिकार पत्र जारी कर किसानों को अधिकार देने के साथ ही की गई. उसके बाद 1789 ई0 में फ्रांसीसी क्रांति में 3 नारे लगाए गए – “स्वतंत्रता, समानता, एवं भातृत्व” . लेकिन मौलिक अधिकारों की लिखित अभिव्यक्ति पूरे विश्व में सर्वप्रथम अमेरिका ने की.

भारत में नागरिकों के 6 अधिकार (Fundamental rights of India )

☆ भारतीय संविधान के भाग 3 द्वारा नागरिकों को 7 मौलिक अधिकार प्रदान किए गए थे परंतु सन 1978 के 44वें  संवैधानिक संशोधन द्वारा संपत्ति के अधिकार को मौलिक अधिकार के रूप में समाप्त कर दिया गया है. संपत्ति के अधिकार का अस्तित्व अब केवल एक साधारण कानूनी अधिकार के रूप में ही रह गया है. अब भारतीय नागरिकों को निम्न 6 मौलिक अधिकार प्राप्त है —-
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fundamental rights of india  
[ 1 ] समानता का अधिकार ( right to equality )
☆ दोस्तों भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 से लेकर 18 तक निम्न पांच प्रकार की समानता ओं का उल्लेख है.
a. विधि के समक्ष समानता — अनुच्छेद 14 के अनुसार भारत राज्य क्षेत्र में किसी भी व्यक्ति को विधि के समक्ष समानता से अथवा कानून के समान सरंक्षण से राज्य द्वारा वंचित नहीं किया जाएगा. इसका तात्पर्य है कि कानून की दृष्टि से सब नागरिक समान है. कानून की दृष्टि में ना कोई छोटा है ना कोई बड़ा है. ना कोई धनवान है और न ही कोई निर्धन है अर्थात कानून के क्षेत्र में किसी के साथ भी भेदभाव नहीं किया जाएगा. सबको समान रूप से विधि का संरक्षण प्राप्त है यह ब्रिटेन से ली गई एक नकारात्मक संकल्पना है.
☆ विधि का शासन — विधि के शासन की संकल्पना का आविर्भाव पश्चिमी उदारवादी चिंतन के साथ होता है. इंदिरा साहनी द्वितीय वाद 2000 में सर्वोच्च न्यायालय ( supreme Court ) ने प्रतिष्ठा और अवसर की समानता को आधारित लक्ष्मण सर्वोच्च न्यायालय का मानना है कि अनुच्छेद 14 में उल्लिखित विधि का शासन ही संविधान    ( constitution ) का मूल तत्व है. इसलिए इसे किसी भी तरह नहीं बदला जा सकता है. अगर संसद ( parliament ) ऐसा भी कोई भी संशोधन करती हैं. जिससे विधि के शासन की संकल्पना पर प्रतिकूल असर पड़ता है तो न्यायालय उसकी संवैधानिकता का परीक्षण करती हुई उसे अभिमानी घोषित कर सकती हैं.
☆ विधि के शासन से आशय — इस व्यवस्था में कानून की सर्वोच्च होती हैं. प्रत्येक व्यक्ति एवं संस्थाओं अपने अधिकार और दायित्व कानून से प्राप्त करते हैं और उसी के तहत संचालित होते हैं. A.V. डायसी के अनुसार विधि के समक्ष समता का विचार विधि का शासन के सिद्धांत का मूल तत्व है.
☆ विधि के समान सरंक्षण की संकल्पना — अमेरिका से विधि के समान संरक्षण की संकल्पना ली गई है जो एक सकारात्मक संकल्पना है. इसका मतलब है – समान परिस्थितियों में रहने वाले व्यक्ति समूह एक समान नियमों से शासित हैं, लेकिन यदि विभिन्न व्यक्ति विभिन्न परिस्थितियों में हो और परिस्थितियां न्यायोचित हो तो राज्य विभिन्न व्यक्ति के साथ भिन्न-भिन्न व्यवहार कर सकता हैं.
☆ नैसर्गिक न्याय — न्यायपालिका नैसर्गिक न्याय के अनुपालन को भी सुनिश्चित करती हैं. इसका मतलब यह हुआ कि यदि कोई भी व्यक्ति किसी निर्णय से प्रभावित होता है तो निर्णय से पूर्व उसे अपना पक्ष रखने का अधिकार है.
☆ नैसर्गिक न्याय की संकल्पना अनुच्छेद 14 में निहित हैं.
b. सामाजिक समानता — अनुच्छेद 15 में व्यक्ति के विरुद्ध धर्म, वंश, जाति, लिंग, जन्म स्थान अथवा इस में से किसी एक से आधार पर कोई भेदभाव नहीं रहेगा.
c. सरकारी नौकरियों के लिए अवसर की समानता – ( अनुच्छेद 16 )
d. अस्पृश्यता का उन्मूलन — ( अनुच्छेद 17 )
2. स्वतंत्रता का अधिकार [ right to freedom ]
☆ भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19 से लेकर 22 तक निम्न प्रकार के सत्ता का अधिकार शामिल है.
a. विचार एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता — अनुच्छेद 19 (1) क में इसका उल्लेख किया गया है. इसमें प्रेस की स्वतंत्रता भी निहित है.
b. नि: शास्त्र एवं शांतिपूर्ण सभा करने की स्वतंत्रता — संविधान के अनुच्छेद 19 (1) क के अनुसार
c. समुदाया संघ बनाने की स्वतंत्रता — संविधान के अनुच्छेद 19 (1) ग के अनुसार समुदाय व संघ बनाने की स्वतंत्रता देश के नागरिकों को.
d. देश के किसी भी भाग में भ्रमण या निवास की स्वतंत्रता — भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19 (1) घ और च के अनुसार देश के सभी नागरिकों को देश के किसी भी भाग में में भ्रमण करने और निवास करने की स्वतंत्रता है.
e. व्यवसाय की स्वतंत्रता — ( संविधान के अनुच्छेद 19 16 के अनुसार )
☆ युक्तियुक्त निर्बंधन –  युक्तियुक्त निर्बंधन की संकल्पना अनुच्छेद 19 द्वारा प्रदत्त स्वतंत्रता के अधिकार से जुड़ी हुई हैं. युक्तियुक्त निर्बंधन शब्द की व्याख्या सुप्रीम कोर्ट ने 1950 के गोपाल वाद में स्पष्ट की है. संविधान के तहत व्यक्तियों और नागरिकों को जो अधिकार प्रदान किए गए हैं. वे असीमित और अमर्यादित नहीं है. भारत का संविधान विश्व का अकेला ऐसा संविधान हैं जो व्यक्तियों और नागरिकों के अधिकारों के उल्लेख के साथ साथ इस पर युक्तियुक्त निर्बंधन लगाने की भी अनुमति देता है अनुच्छेद 23 से अनुच्छेद 30 तक विभिन्न संवैधानिक प्रावधानों से युक्तियुक्त निर्बंधन की संकल्पना निहित हैं.
f. आपराधिक सिद्धि के विषय में सुरक्षा — अनुच्छेद 20 के अनुसार किसी व्यक्ति को तब तक अपराधी नहीं ठहराया जा सकता जब तक उसने अपराध के समय में लागू किसी कानून का उल्लंघन ना किया हो उसे किसी एक अपराध के लिए एक बार से अधिक दंड दिया जा सकता है और न ही किसी व्यक्ति को स्वयं अपने विरुद्ध साक्ष्य होने के लिए बाध्य किया जा सकता है.
☆ चुप रहने का अधिकार — मानवाधिकारों में चुप रहने का अधिकार ( right to silence ) भी शामिल है जो संविधान के अनुच्छेद 20 (3) के तहत नागरिकों को प्रदान किया गया है. चुप रहने का अधिकार का मतलब है कि किसी भी संदिग्ध आरोपी व्यक्ति को अपने खिलाफ किसी तरह का साक्ष्य देने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता है और अगर संदिग्ध आरोपी व्यक्ति पूछताछ के दौरान चुप रहता है तो उसकी चुप्पी का कोई भी उल्टा मतलब नहीं निकाला जा सकता है.
☆ वर्ष 2010 में सुप्रीम कोर्ट ने नारको टेस्ट ब्रेन मैपिंग एवं लाइव डिटेक्टर टेस्ट को अनुच्छेद 20 (3) का उल्लंघन बताया था.
g. जीवन और शरीर रक्षण की स्वतंत्रता — अनुच्छेद 21 विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया को छेड़छाड़ अन्य किसी प्रकार से किसी व्यक्ति को उसके जीवन या उसकी व्यक्तिगत स्वतंत्रता से वंचित नहीं किया जाएगा. जीवन के अधिकार में आत्महत्या का अधिकार शामिल नहीं है. ( ज्ञानकोर  वाद )
☆ अरूणा शानबाग बाद में उच्चतम न्यायालय ने निर्णय दिया कि “जीवन के अधिकार में आत्महत्या शामिल नहीं है”
☆ इच्छामृत्यु ( Euthanasia ) द्वारा जीवन को समाप्त करने का अधिकार नहीं है . जैन धर्मावलंबी “संथारा” के द्वारा इच्छा मृत्यु का प्रयास करते हैं. राजस्थान उच्च न्यायालय के अनुसार संथारा आत्महत्या का प्रयास है. इसलिए दंडनीय अपराध है. परंतु उच्चतम न्यायालय ने इस निर्णय पर फिलहाल रोक लगा दी है. सर्वोच्च न्यायालय ने 9 मार्च 2018 को फैसला दिया कि कोमा में जा चुके या मौत की कगार पर पहुंच चुके लोगों के लिए निष्क्रिय इच्छामृत्यु और इच्छा मृत्यु के लिए लिखी गई वसीयत कानूनी रूप से मान्य होगी.
☆ निजता का अधिकार ( right to privacy ) — 24 अगस्त 2017 को सर्वोच्च न्यायालय के 9 सदस्य न्याय पीठ ने निजता के अधिकार को मूल अधिकार स्वीकार किया. अब विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया के द्वारा ही किसी व्यक्ति के निजी मामलों या बायोमैट्रिक डाटा उसकी अनुमति के आधार पर ही दिया जा सकता है. यह live to dignity  ( सम्मान के लिए जीना ) के अधिकार में शामिल हैं.
☆ समलैंगिकता – 6 सितंबर 2018 को सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए निर्णय के अनुसार समलैंगिक संबंध को निजता के अधिकार संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत मानते हुए इसे अपराध मानने वाली भारतीय दंड संहिता के अध्याय 16th की धारा 370 से बाहर कर दिया है.अर्थात कोई भी व्यक्ति समलैंगिक संबंध बना सकता है.
h. गिरफ्तारी व बंदीकरण के विरूद्ध सुरक्षा — संविधान के अनुच्छेद 22 द्वारा बंदी बनाए जाने वाले व्यक्ति को कुछ संवैधानिक अधिकार प्रदान किए गए हैं. इसके अनुसार किसी व्यक्ति को बंदी बनाए जाने के पश्चात यह आवश्यक होगा कि उसे बंदी बनाए जाने के कारण बताया जाए तथा गिरफ्तारी के 24 घंटे के भीतर ही निकटतम न्यायाधीश के सम्मुख उपस्थित किया जाए. निवारक निरोध का उद्देश्य व्यक्ति को अपराध के लिए दंड नहीं वरन उसे अपराध करने से रोकना है.
☆ अनुच्छेद 22 (क) के खंड 4 के अनुसार निवारण निवारक निरोध का तात्पर्य है “किसी प्रकार का अपराध किए जाने से पूर्व और किसी न्यायिक प्रक्रिया के नजर बंदी” निवारक निरोध व्यवस्था के अंतर्गत जो भी कानून बनाए जाए गए, उनमें संभवतया सबसे अधिक कठोर कानून आतंकवादी और विध्वंसात्मक गतिविधि निरोध अधिनियम या टाडा था.

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3. शोषण के विरुद्ध अधिकार [ right against exploitation ]
☆ दोस्तों भारत का संविधान भारत में एक जन कल्याणकारी राज्य की स्थापना करता है. संविधान के अनुच्छेद 23 व 24 के अनुसार कोई व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति का शोषण नहीं कर सकेगा. इस संबंध में निम्न व्यवस्था की गई है ———–
A. मनुष्य का क्रय विक्रय निषेध — संविधान के अनुच्छेद 23 (1) के अनुसार मनुष्य, स्त्रियों और बच्चों के क्रय-विक्रय को दंडनीय अपराध माना गया है.
B. बेगार का निषेध — संविधान के अनुच्छेद 23 (3) के अनुसार किसी व्यक्ति से बेकार या बलपूर्वक काम लेना दंडनीय अपराध माना गया है.
C.बाल श्रम का निषेध — संविधान के अनुच्छेद 24 के अनुसार 14 वर्ष तक के आयु वाले बालकों को कारखानों खदानों या किसी जोखिम भरे काम के लिए नौकर नहीं रखा जा सकेगा.
● 13 मई 2015 को केंद्रीय कैबिनेट ने बाल श्रम कानून में संशोधन को मंजूरी देते हुए 14 वर्ष की आयु वर्ग के बालकों को पारिवारिक कारोबार में काम करने की छूट दी गई है.

4. धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार [ right to religious freedom ]
☆ भारत का संविधान भारत को धर्मनिरपेक्ष राज्य घोषित करता है. भारतीय संविधान के अनुच्छेद 25 से 28 द्वारा सभी व्यक्तियों को चाहे वे विदेशी हो या भारतीय धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार प्रदान किया गया है. इस अधिकार के अंतर्गत निम्न स्वतंत्रता प्रदान की गई है —-
A. धार्मिक आचरण एवं प्रचार की स्वतंत्रता संविधान के अनुच्छेद 25 के अनुसार प्रत्येक व्यक्ति को अपने अंतःकरण की मान्यता के अनुसार किसी धर्म को अबाध रूप से मानने, उपासना करने और उसके प्रचार की पूर्ण स्वतंत्रता प्रदान की गई है.
☆ 1977 के स्टेनस्लास बनाम मध्यप्रदेश वाद में सर्वोच्च न्यायालय ने वादी की दलील को अस्वीकार कर दिया कि धर्म के प्रचार की स्वतंत्रता के अंतर्गत धर्म परिवर्तन का अधिकार भी शामिल है इस संदर्भ में वर्तमान निम्न स्थिति है –( अ ) यदि कोई व्यक्ति अपनी इच्छा से  धर्म परिवर्तन करता है तो उसे इस बात की छूट है. ( ब ) यदि कोई व्यक्ति या संस्था किसी भय, दबाव या प्रलोभन के द्वारा किसी के धर्म परिवर्तन कराने की कोशिश करता है तो भारत का संविधान इस बात की अनुमति नहीं देता है.
B. धार्मिक कार्यों के प्रबंधन की स्वतंत्रता — संविधान के अनुच्छेद 26 के द्वारा
C. धर्म विशेष की उन्नति हेतु कर देने अथवा ना देने की स्वतंत्रता — संविधान के अनुच्छेद 27 के अनुसार
D. व्यक्तिगत शिक्षण संस्थाओं में धार्मिक शिक्षा देने की स्वतंत्रता — अनुच्छेद 28 की व्यवस्था के अनुसार, किसी राजकीय शिक्षण संस्था में किसी धर्म की शिक्षा नहीं दी जा सकती. परंतु सरकार द्वारा मान्यता अथवा सहायता प्राप्त व्यक्तिगत शिक्षण संस्थाएं जो गैर सरकारी धन से स्थापित हुई में धार्मिक शिक्षा दी जा सकेगी, परंतु ऐसी संस्थाओं में पढ़ने वाले विद्यार्थियों को उस धार्मिक शिक्षा या उपासना प्रार्थना में भाग लेने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता.
5. संस्कृति और शिक्षा संबंधी अधिकार [ culture and education rights ]
☆ दोस्तों भारतीय संविधान के अनुच्छेद 29 और 30 के द्वारा भारत के सभी नागरिकों को संस्कृति और शिक्षा संबंधी 2 अधिकार {culture and education rights } प्रदान किए गए हैं —–
A. अल्पसंख्यकों के हितों का सरंक्षण — संविधान के अनुच्छेद 29 के अनुसार नागरिकों को अपनी भाषा लिपि या संस्कृति को सुरक्षित रखने का पूर्ण अधिकार है.
B. अल्पसंख्यकों को अपनी शिक्षण संस्थाओं की स्थापना और प्रशासन का अधिकार — संविधान के अनुच्छेद 30 के अनुसार
6. संवैधानिक उपचारों का अधिकार [ right to constitutional remedies ]
☆ दोस्तों भारतीय संविधान के अनुच्छेद 32 से 35 के अंतर्गत संवैधानिक उपचारों का अधिकार [ right to constitutional remedies ] उल्लेख किया गया है.
☆ अनुच्छेद 32 से 35 के अंतर्गत प्रत्येक नागरिक को यह अधिकार प्रदान किया गया है कि हम मौलिक अधिकारों की रक्षा के लिए उच्च न्यायालय की शरण ले सकता है.
☆ डॉ0 अंबेडकर का संविधान का हृदय आत्मा है.
☆ नागरिकों के मौलिक अधिकारों ( Fundamental rights ) की रक्षा के लिए न्यायालयों द्वारा निम्न प्रकार के लेख जारी किए जा सकते हैं —–
A.  बंदी प्रत्यक्षीकरण लेख ( habeas corpus ) – यहां एक लैटिन शब्द है जिसका शाब्दिक अर्थ होता है , सशरीर उपस्थित होना । इस  लेख द्वारा न्यायालय बंदी बनाए गए व्यक्ति की प्रार्थना पर अपने समक्ष उपस्थित करने या उसे बंदी बनाने का कारण बताएं जाने का आदेश दे सकता हैं. यदि न्यायालय के विचार में संबंधित व्यक्ति को बंदी बनाए जाने के पर्याप्त कारण नहीं है या उसे कानून के विरुद्ध बंदी बनाया गया है तो न्यायालय उस व्यक्ति को तुरंत रिहा करने का आदेश दे सकता हूं.
B. परमादेश लेख ( mandamus ) — यह एक लैटिन शब्द है जिसका शाब्दिक अर्थ है “आज्ञा देना” | जब कोई सरकारी विभाग या अधिकारी अपने सार्वजनिक कर्तव्यों का पालन नहीं कर रहा है जिसके परिणाम स्वरूप किसी व्यक्ति के मौलिक अधिकार का हनन होता है तो न्यायालय इस लेख द्वारा उस विभाग अधिकारी को कर्तव्य पालन हेतु आदेश दे सकता है.
C.  प्रतिवेदन लेख ( prohibition ) — यह एक लैटिन शब्द है इस लेख का अर्थ है “रोकना” | यह लेख सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालय द्वारा अपने अधीनस्थ न्यायालय को जारी करते हुए आदेश दिया जाता है कि वह उन मुकदमों की सुनवाई न करे जो उसके अधिकार क्षेत्र के बाहर है.
D.  प्रेक्षण लेख ( certiorari ) — यह एक लैटिन शब्द हैं इस लेख का अर्थ है पूर्णतया सूचित करना या मंगा लेना इस आज्ञा पत्र द्वारा उच्चतम न्यायालय उच्च न्यायालय को उच्च न्यायालय अपने अधीनस्थ न्यायालयों को किसी मुकदमे को सभी सूचनाओं के साथ उच्च न्यायालय में भेजने की आज्ञा देते हैं.
E. अधिकार पृच्छा लेक ( Quo – warranto ) — इस का अर्थ है “किस अधिकार से” जब कोई व्यक्ति किसी सार्वजनिक पद को अवैधानिक तरीके से या जबरदस्ती प्रयास कर लेता है तो न्यायालय इस लेख द्वारा उसके विरुद्ध पद को खाली कर देने का आदेश निर्गत कर सकता है.
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संपत्ति का अधिकार [ right to property ] :  कानूनी अधिकार — संविधान के परिवर्तन के समय संपत्ति के अधिकार को मूल अधिकार के रूप में मान्यता दी गई थी और संविधान के अनुच्छेद 19 (1) ( च ) तथा 31 में इस संबंध में प्रावधान किया गया था. संविधान के पहले, चौथे, पच्चीसवें और 19वें संशोधन द्वारा संपत्ति के मूल अधिकार की सीमा को काफी हद तक कम कर दिया और 44 से संविधान संशोधन द्वारा संविधान के अनुच्छेद 19 (1) ( च ) तथा 31 को निरस्त करके संपत्ति के मूल अधिकार को समाप्त कर दिया गया. और इसी संशोधन द्वारा संविधान में अनुच्छेद 300 (क) को जोड़कर संपत्ति के अधिकार को कानूनी ( विधिक ) अधिकार बना दिया गया. इस अनुच्छेद के अनुसार संपत्ति का अधिकार अब केवल कानूनी अधिकार है , जिसका तात्पर्य है कि राज्य को किसी ऐसे व्यक्ति को संपत्ति को लेने का अधिकार हैं लेकिन ऐसा करने के लिए उसे किसी विधि का प्राधिकार प्राप्त होना चाहिए.
  मौलिक अधिकारों के बारे में महत्वपूर्ण तथ्य –

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🔥 दोस्तों 10 दिसंबर 1948 को UNO के तत्वाधान में एलिनोर  रुजवेल्ड के नेतृत्व में 30 सार्वभौमिक अधिकारों की घोषणा की गई.
🔥 राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग – इसकी स्थापना अक्टूबर 1993 में की गई. इसके प्रथम अध्यक्ष श्री रंगनाथ मिश्र थे.
🔥 भारत में पहली बार मौलिक अधिकारों की मांग बाल गंगाधर तिलक ने अपने स्वराज विधेयक. ( 1895 ) में की थी.
🔥 पहली बार मौलिक अधिकारों का वर्णन मोतीलाल नेहरू की नेहरू  ( 1928 ) रिपोर्ट में मिलता है.
🔥 बाल गंगाधर तिलक के स्वराज्य विधेयक के बाद एनी बेसेंट के नेतृत्व में गृह स्वराज बिल ( home rule bill ) के तहत मौलिक अधिकारों ( Fundamental rights ) की मांग की गई.
🔥 1925 में तैयार की गई कॉमन वेल्थ विल ऑफ इंडिया में मौलिक अधिकारों की बात की गई फिर 1927 में कांग्रेस के मद्रास अधिवेशन में ए0 एम0 अंसारी द्वारा मौलिक अधिकारों की मांग रखी गई और
🔥  संविधान के निर्माण के लिए दो समितियां गठित की गई जो सरदार वल्लभभाई पटेल की अध्यक्षता वाली मौलिक अधिकार समिति व जेबी कृपलानी के अध्यक्षता वाली मौलिक अधिकारों की उपसमिति थी.
तो दोस्तों उम्मीद करता हूं आज की हमारी यहां पोस्ट भारतीय संविधान मे मौलिक अधिकार । fundamental rights of the Indian citizen. आपको पसंद आई होगी. दोस्तों इस पोस्ट में हमने बात की है इन सभी विषय पर 6 मौलिक अधिकारों ( Fundamental rights in hindi ) के बारे में मूलअधिकार क्या होते हैं ( what is fundamental rights )  के बारे में मूल अधिकारों की शुरुआत कैसे हुई के बारे में , मौलिक अधिकारों के बारे में महत्वपूर्ण तथ्य important facts about fundamental rights. इस पोस्ट को दोस्तों आप अपने दोस्तों के साथ शेयर कीजिए ताकि वहां भी इस पोस्ट को पढ़कर लाभ उठा सकें. || धन्यवाद ||

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